Prachin Kal Se Vartman Kal Tak Bhartiya Samaj Me Nari Ki Sthiti
Abstract
भारतीय वैदिक काल भारतीय संस्कृति एंव सभ्यता का उत्क्रष्ट काल माना जाता है इस युग मे नारी को देवी तुल्य एंव पूजनीय स्थान प्रदान किया गया था यहां स्त्रियों से संबधित कोई भी कुप्रथाएं प्रचलन में न होने के कारण स्त्रियो की स्थिति उच्च थी साथ ही वे पुरूष वर्ग के समान सभी अधिकारो की अधिकरिणी थी परन्तु समय मे परिवर्तन के साथ स्त्रियो की भूमिका भारतीय समाज मे निरंतर क्षीर्ण होती गई जिससे वे सबला से अबला बनती गयी। इसी स्थिति के चलते आज वर्तमान मे कई सत्त प्रयासो एंव सुधारो के बावजूद भी महिलाएं अपनी वास्तविक स्थिति प्राप्त नही कर पा रही है जिसके लिये निरंतर सुधारों एंव प्रयासों कि आवश्यकता है जिससे समाज मे नारी को पुरूष के समान दर्जा प्राप्त हो सके।
Metrics
References
महर्षि गर्ग का कथन: बौद्धायन धर्मसूत्र, अध्याय 4 पृष्ठ 13 संस्करण प्रथम।
सुरेन्द्र कुमार शर्मा: महिलाओ के अधिकारो के प्रति चेतना आर.बी.एस.ए पब्लिशर्स जयपुर, प्रथम संस्करण 2010 पेज न-20।
दहेज प्रथा उन्नमूलन अधिनियम 1961:
http://www.wcdnic.in/dowry prohibition rules.html अधिगमन तिथि 2006-12-24
http://www.wcdnic.in/act/itpa1956html अधिगमन तिथि 2006-12-24
सोमाद्रि शर्मा: अब तक तेरी यही कहानी , 19 जून 2012 राजस्थान पत्रिका पेज न-02
Voilence against Women in India: Sarve In India From Internet.
डॉ. गजानन शर्मा: प्राचीन भारतीय साहित्य में नारी पृष्ठ 48।
श्री ललीत शाह जहांपुरीः चाँद, अक्टूबर 1945 प्रकाशन उत्तर प्रदेश संस्करण तृतीय।
डॉ. उमाशंकर पचौरी: हिन्दी मासिक पत्रिका स्वदेश , 10 अक्टूबर 2008, प्रकाशन ग्वालियर (म.प्र.)।
Downloads
Published
How to Cite
Issue
Section
License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 4.0 International License.